( तर्ज अव तुम दया करो महादेवजी ० ) '
सियाराम ' नाम जप प्यारे रे !
जीवनका भरोसा नाही || टेक ||
है पंच तत्त्वका चोला ,
पंछी है जीव निराला |
जब उडे निकलके अकेला जी ,
पछताओगे मनमाही ॥१ ॥
बडि रामनामकी महिमा ,
जो भजे चले निज - धामा ।
सुख पावे जनमके जनमाजी ,
फिर जमका धोखा नाही ॥२ ॥
वाल्मिकने नाम उचारा ,
अपने जियको रंग डारा ।
रामायण खास निकाराजी ,
प्रभु देवत आय सहाई || ३ ||
कोइ राम - नाम नित बोले ,
वह सुखके भेदको खोले ।
कहे तुकड्या पियो ये प्यालेजी ,
फिर अमरबूटी मन भायी ॥४ ॥
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